किस एंड सेफ लाइफ - 1 Alam Ansari द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • स्वयंवधू - 31

    विनाशकारी जन्मदिन भाग 4दाहिने हाथ ज़ंजीर ने वो काली तरल महाश...

  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

  • शोहरत का घमंड - 102

    अपनी मॉम की बाते सुन कर आर्यन को बहुत ही गुस्सा आता है और वो...

श्रेणी
शेयर करे

किस एंड सेफ लाइफ - 1

यह कहानी के सभी पात्र और घटनाए काल्पनिक है, इसका किसी भी व्यक्ति या घटना से कोई संबंध नहीं है। इस कहानी का उद्देश्य किसी भी जाति धर्म आदि की भावनाओ को ठेस पहुंचाना नहीं है, यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा।

तो हम शुरू करते है...

चाकु से टपकता खून बारिश के पानी में घुल रहा था, आठ साल का लड़का जो हाथ में चाकु लिए बारिश में भीग रहा था, उसकी आंखों में जमाने भर की नफरत और गुस्से की आग जो उसे अंदर ही अंदर जला रही थी। वो अपने अंदर की आग से जमाने भर को जला देना चाहता था। बारिश का ठंडा पानी भी उसके अंदर की आग को बुझा नहीं पर रही थी।

रात के घने अंधेरे में देहरादून की सड़क पर दो लडकियां हाथों में शोपिंग बैग्स लिए चल रही थी। अब आप लोग सोंच रहें होंगे दो लडकियां वो भी अकेले सुनसान सड़क पर हम बताते है " हमारा नाम सना सईद खान है, और ये जो हमारे साथ है वो हमारी बेस्ट फ्रैंड है, निशा अग्रवाल।"

निशा सना की अम्मी अब्बू से लड़ झगड़ कर अपने साथ अपनी बहन की शादी में देहरादून लेकर आ गई। शादी की शोपिंग में दोनों इतने ज्यादा खो गईं की उन्हें टाईम का पता ही नहीं चला, नतीजा ये की दोनों को कोई टैक्सी ऑटो नहीं मिला कैब वालो की स्ट्राइक थी तो वो कैब भी बुक नहीं कर सकती थी। दोनों हाथों में बैग लिए सड़क पर दोनों को पैदल चलना पड़ रहा था।

"हमारे बराबर में चल रही लड़की इसे तो जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा है।" सना ने मन ही मन सोंचा और निशा को घूर कर देखते हुए तेज आवाज़ में खीजते हुए बोली, "यार निशा और कितना चलना है, हमसे अब और नहीं चला जायेगा। हमारे पैरो में दर्द हो रहा है।"

निशा ने वहीं कहा जो पिछले एक घण्टे से बोलती आ रही थी, "बस दस मिनट और सना हम पहुंचने वाले है।" सना ने उसे अपनी कंजी आंखो से घुरा और कहा, "बस बहुत हो गया इतनी देर से तुने बार बार दस मिनट बोल बोल कर एक घंटा कर दिया " सना ने चिल्लाते हुए कहा तो उसकी आवाज और उसका गुस्सा देख कर निशा डर गई।

निशा ने कुछ बोलने के लिए मुंह खोला ही था की तभी एक तेज रोशनी दोनों की आंखो पर पड़ी और दोनों ने अपने एक हाथ से अपनी आंखों को ढक लिया। जैसे ही वो रोशनी उनकी आंखो पर से हटी दोनों ने हाथ हटाया और सामने देखा एक कार जो तेज रफ्तार से चली आ रही थी। निशा ने उस कार को देख कर कहा, "क्या इसका ड्राईवर ड्रंक है।"

"देखने से तो कुछ कुछ ऐसा ही लग रहा है " सना ने अपनी नजरे कार के उपर गड़ाए हुए ही कहा।

अभी दोनों खड़े उस कार को देख ही रहे थे की तभी उस कार के नीचे एक बड़ा सा पत्थर आ गया और कार पलट गई और घसीटती हुई दूर तक चली गई। पहली बार दोनों ने लाइव एक्सिडेंट देखा था। सना ने खुद से ही कहा, " बीस साल की लाईफ में पहली बार लाइव एक्सिडेंट देखा है।"

उसे महसूस हुआ की निशा ने उसके हाथों को कसकर पकड़ा हुआ है। एक धीमी और डरी आवाज़ दुआ के कानो में गई " सना चल यहां से जल्दी मुझे बहुत डर लग रहा है।"अब सना क्या कहती डर तो उसे भी लग रहा था।

" अरे पर हम ऐसे थोड़ी ना जा सकते हैं।" सना ने सोंचा और कहा, "निशा हमें इनकी मदद करनी चाहिए।"

सना का इतना कहना था की निशा उस पर बरस पड़ी " तेरा दिमाग खराब हो गया, हमे इन सब में नहीं पड़ना तु चल यहां से।"

सना जानती थी निशा नहीं मानेगी उसने भी अपना ब्रह्मास्त्र यूज किया और वहीं अपना इमोशनल डायलॉग मारा " अगर इसकी जगह हमारा कोई फैमली मेंबर होता तो क्या तब भी तु यहीं कहती।" सना का इतना कहना था की निशा उसे घूर कर देखने लगीं मानो कह रही हों, निशा की ख़ामोशी बता रही थी उसकी हां है।

दोनों ही धीमे कदमों से उस उल्टी पड़ी कार के पास गई। एक आदमी की दर्द से करहाने की आवाज सना के कानों में गई और उसने जल्दी से कहा, "देखो निशा वो जिन्दा है।"

निशा ने झुंझलाते हुए कहा, "कान है मेरे पास।"

निशा का गुस्सा होना जायज था तो सना ने भी कुछ नहीं कहा। दोनों मिलकर उस आदमी को कार से बाहर तो ले आए। पर अब उसे देख कर दोनों को ही बहुत डर लग रहा था। सर पर चोट लगने की वजह से चेहरा पुरा खून में भीग गया था। शक्ल भी पहचान में नहीं आ रही थी। उस आदमी की आंखे बंद थी और सांसे धीरे धीरे और धीमी हो गई थी।

उस आदमी के पास बैठे दोनों सोंच रही थी। अब आगे करना क्या है उसकी हालत देख कर दोनों के दिमाग ने जैसे काम करना ही बंद कर दिया था। तभी निशा ने तेज आवाज में कहा, "अरे इसकी तो सांसे ही रुक गई।"

"क्या सच में ये मार गया " सना ने पूछा सना की बातों पर निशा ने झुंझलाते हुए कहा।

"सांसे रुक गई है तो मर ही गया होगा ना।" सना ने निशा की बातों को इग्नोर किया और उसकी गर्दन के लेफ्ट साईड दो उंगली रख प्रेस करके उसकी हार्ट बीट चैक की।

"इनकी हार्ट बीट तो चल रही है " सना ने कहा।

"पर ये सांस क्यों नहीं ले रहा " निशा ने कहा।

"निशा इसकी सांसे वापस आजाएंगी। पर तुझे इसे अपनी सांसे देनी होंगी" सना ने कहा।

"दिमाग खराब हो गया है तेरा मेरा बॉयफ्रेंड है क्या तु जानती नहीं, मैं ये नहीं करूंगी। तु बचाना चाहती है इसे तु ही कुछ कर। जब तक मैं एंबुलेंस बुलाती हुं " निशा ने जवाब दिया और उठ कर फोन लेकर दुसरी साईड चली गई।

सना को समझ नहीं आ रहा था अब वो क्या करें उसने अपने सामने लेटे उस आदमी को देखा जो मौत और जिन्दगी के बीच के रास्ते पर खड़ा था। उसकी ये हालत सना को उसके अतीत की याद दिला रही थी। ना जानें सना को क्या हुआ उसने अपने हाथ आगे बढ़ाए और उसके होठों को थोड़ा खोल कर उस पर अपने होंठ रख दिए और उसे अपनी सांसे देने लगी। जब निशा कॉल करके पीछे मुड़ी तो सना को अंजान आदमी को अपनी सांसे देता देख कर चौंक गई। निशा ऐसी खड़ी होकर उसे देख रही थी जैसे वो कोई स्टैच्यू हो।

कुछ समय बाद उस आदमी के साथ दोनों हॉस्पिटल पहुंच गई थी। एक वर्डबॉय की हेल्प से दोनों उसे अंदर ले जानें लगी तभी रिसेप्सनिस्ट ने दोनों को रोका और कहा, "पहले फॉर्म फील करों फिर अंदर ले जाना ।"

"बताओ ये भी कोइ बात हुई, आदमी यहां इतना घायल है और इन्हें फॉर्म फिल करने की पड़ी थी " सना ने खुद से कहा और अपनी कंजी आंखो से उस रिसेप्सनिस्ट को घुरने लगीं। सना ने बिना एक पल गवाए फॉर्म फिल कर दिया। जैसे ही वो जानें को हुई रिसेप्सनिस्ट ने उसे फिर से रोका, "आपने पेशेंट के साथ अपना रिलेशन तो मैंशन किया ही नहीं।"

सना कुछ कहती उससे पहले ही वार्डबॉय ने कहा, "अरे देख नहीं सकती हो ये इनकी वाइफ है जरा इनके कपड़े देखो इनकी हसबैंड का खून इनके कपड़ो पर कैसे लगा है।"

वर्डबॉय की बात सुन कर सना ने अपने मन में ही चीखते हुए कहा, "हसबैंड, ये हमारे हसबैंड नहीं है, अरे हम तो बस इनकी मदद कर रहे थे, हम तो इन्हें जानते तक नहीं।"

सना ने लचारगी से निशा की तरफ देखा जो उसके उपर मन ही मन हंस रही थी। सना की हालत पर तरस खा कर निशा उसके पास आई और उसके कान में धीरे से बोली " ये जो रायता फैलाया है ना इसे अब तु ही समेटेगी। कुछ सही मत लिखना।"

सना ने एक बार फिर हाथों में पैन पकड़ा और वाइफ के कॉलम पर टिक कर दिया शर्मा लिख दिया।

डॉक्टर अंदर उस आदमी का ऑपरेशन कर रहे थे। दोनों वहीं बैंच पर बैठी थी बार बार सना अपने दुपट्टे को हाथों से मसल रही थी। निशा इतना गुस्से में थी वो दुआ से बात ही नहीं कर रही थी। तभी ऑपरेशन रूम का डोर ओपन हुआ और डॉक्टर बाहर आए। क्या वो ठिक है डॉक्टर " सना ने जल्दी से पुछा।

"सही टाईम पर ले आई आप उन्हें वरना उन्हें बचाना मुश्किल होता " डॉक्टर की बात सुन कर सना ने स्माइल किया ही था की अगले पल वो उससे छीन गई, डॉक्टर ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा, "पर अभी खतरा टला नहीं है, उन्हें बहुत ज्यादा ब्लड लॉस हुआ है, उनका जो ब्लड ग्रुप है वो ब्लड हमारे हॉस्पिटल में अवेलेबल नहीं है, ब्लड बैंक से भी पता किया है वहा पर भी नहीं है।"

डॉक्टर की बातों पर सना ने कहा, "उनका ब्लड ग्रुप क्या है?"

सना के सवाल पर डॉक्टर ने उसे घूर कर देखा। सना उनके देखने का मतलब अच्छे से समझ रही थी।

"ओ नेगेटिव बहुत ही रेयर है " उनकी बात सुनते ही सना ने जल्दी से कहा, "ये ग्रुप तो हमारा भी है, आप हमारा ब्लड ले लीजिए।"

सना की बातों से डॉक्टर तो खुश हो गए थे। पर निशा वो उसे खा जानें वाली नजरों से देख रही थी। निशा ने सना के कान में धीरे से कहा, "पागल हो गई है क्या।"

सना ने निशा को समझाते हुए कहा, "अब इतनी मेहनत की हमने उसे बचाने की, ऐसे ही थोड़ी ना मरने देंगे, थोड़े से खून की ही तो बात है हम अभी देकर आते है।"

सना अपनी बात कह कर चली गई। तो वहीं निशा गुस्से में बड़बड़ाते हुए खुद से बोली" बोल तो ऐसे रही है, जैसे खून नहीं पानी दे रही हो।"

सना को उसी रूम में ले जाया गया जहां उस आदमी को रखा गया था। बेड में लेटी दुआ उस बोटल को देख रही थी जिसमे उसके शरीर से निकल रहा ब्लड इकट्ठा हो रहा था और दूसरी तरफ लेटे उस आदमी के शरीर में जा रहा था। दोनों के बिच की दीवार पर्दे की थी। पर्दे के इस तरफ दुआ और पर्दे के दुसरी तरफ वो आदमी। ब्लड डोनेट करके दुआ बाहर आई। तो उसके कदम लड़खड़ा गए। इससे पहले दुआ गिरती निशा ने संभाल लिया और उसे ताने देते हुए बोली " कहो तो दो चार बोटल ब्लड और डोनेट करवा दूं।"

सना ने पलट कर निशा से कुछ नहीं कहा और चुप चाप उसके ताने सुनती रही। निशा ने सना को पानी पिलाया और बोली" घर चले या यहीं रहने का इरादा है।"

"दिल तो मान नहीं रहा था पर निशा से और पंगे नहीं ले सकते हम" सना ने सोंचते हुए अपनी गर्दन छोटे बच्चे की तरह हां में हिला दी। निशा सना का हाथ पकड़ उसे हॉस्पिटल से बाहर ले जाने लगी। सना के कदम हॉस्पिटल से बाहर जा रहे थे पर नज़रे उस रूम को देख रही थी। जिस रूम में वो आदमी था। बढ़ता हुआ फासला उसे ऐसा फील करवा रहा था जैसे बहुत कीमती कुछ उसका पीछे छूट गया हो।

देर रात दोनों घर पहुंची कल शादी थी तो सब सो चुके थे। दबे पाव दोनों भी अपने रूम में जानें लगी। तभी एक कड़क आवाज़ दोनों के कानों में गई। पीछे मुड़ कर देखा तो सामने लेडी डॉन खड़ी थी। निशा की दादी मां अनिता अग्रवाल वो दोनों के पास आई और दोनों के कानों को पकड़ मोड़ते हुए बोली " ये कोई टाईम है तुम दोनों के घर आने का अभी क्यों आई सीधा सुबह ही आती।"

दादी की बात सुन कर दुआ ने दीवार पर टंगी घड़ी की तरफ देखा। घड़ी भी दोनों की साफ साफ चुगली कर रही थी और रात के तीन बजा रही थी। निशा ने माफी मांगते हुए कहा, "दादी वो ऑटो नहीं मिल रहा था।"

दादी ने अपनी छड़ी उठाई और निशा के बेक पर मारते हुए बोली "इससे अच्छा झूठ नहीं मिला।"

निशा चिल्लाते हुए बोली "आह दादी प्लीज छोड़ों ना दर्द हो रहा है।"

दादी ने दोनों के कान छोड़े और अपनी आंखो से डराते हुए बोली" सच बताओ।"

उनका लहजा कुछ ऐसा था झूठ उनसे बोला नही जाता तो दोनों ने सच ही बता दिया। उनकी बात सुन कर खुशी से दादी ने दोनों के माथे को चूमा और सोने के लिए बोल कर चली गई।